स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स करते हैं आपका बैंक अकाउंट खाली, जानें कैसे बचें साइबर ठगी से…

आजकल ठगी के लिए क्रिमिनल्स स्क्रीन शेयरिंग ऐप जैसे कि एनीडेस्क, टीम व्यूअर, क्विक सपोर्ट, एयरड्रॉयड आदि की मदद लेने लगे हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि मोबाइल पर इन ऐप्स को कोई डाउनलोड या इंस्टॉल करने के लिए कहता है, तो तुरंत सतर्क हो जाएं। आइए जानते हैं कैसे होता है इन स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स से ठगी का खेल…

Highlights

  1. स्क्रीन शेयरिंग ऐप से मुंबई की महिला को लगी 7 लाख रु. की चपत
  2. एनीडेस्क, टीम व्यूअर क्विक सपोर्ट जैसे ऐप्स से रहें बचकर
  3. किसी अनजान के कहने पर डाउनलोड न करें कोई ऐप्स
63040

आप चाहें कितने भी सतर्क क्यों न हो जाएं, कई बार साइबर ठग आपसे एक कदम आगे रहता है। यही वजह है कि पढ़े-लिखे लोग भी आजकल आसानी से साइबर ठगों के बनाए जाल में फंस जाते हैं। हाल ही में मुंबई में साइबर ठगी की एक बड़ी घटना सामने आई है, जिसमें ठग बिजली बिल के नाम पर 6,91,859 रुपये अकाउंट से गायब कर देता है। इस ठगी को अंजाम देने के लिए Team Viewer Quick Support ऐप का सहारा लिया जाता है।

ठग पीड़ित को यह ऐप मोबाइल में डाउनलोड करने के लिए कहता है। जैसे ही पीड़ित मोबाइल पर ऐप को डाउनलोड करता है, ठग उन्हें गाइड करने लगता है। इसके बाद अकाउंट से 4,62,959 रुपये, 89,000 रुपये और 1,39,900 रुपये यानी कुल 6,91,859 रुपये गायब हो जाते हैं। आजकल ठगी के लिए क्रिमिनल्स स्क्रीन शेयरिंग ऐप जैसे कि एनीडेस्क, टीम व्यूअर, क्विक सपोर्ट, एयरड्रॉयड आदि की मदद लेने लगे हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि मोबाइल पर इन ऐप्स को कोई डाउनलोड या इंस्टॉल करने के लिए कहता है, तो तुरंत सतर्क हो जाएं। आइए जानते हैं कैसे होता है इन स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स से ठगी का खेल…

Screen Sharing Apps से ठगी का खेल

वैसे तो स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स (Screen Sharing Apps) प्रोफेशनल्स के बड़े काम का चीज है, लेकिन अब इसका उपयोग साइबर ठगी के लिए खूब किया जा रहा है। साइबर ठगी के कई मामलों में देखा गया है कि क्रिमिनल्स लोगों को स्क्रीन शेयरिंग ऐप डाउनलोड करने के लिए दबाव डालता है। बहुत सारे लोग इन ऐप्स के फंक्शंस से अनजान होते हैं और वे इसे आसानी से डाउनलोड कर लेते हैं। इसके बाद पीड़ित अपनी पूरी मोबाइल स्क्रीन को ठग साथ शेयर कर देते हैं। यहां साइबर ठग चुपके से पीड़ित के फोन की स्क्रीन को रिकॉर्ड कर लेता है, जिसमें यूपीआई लॉगइन और ओटीपी भी शामिल होते हैं। अगर इस तरह के फ्रॉड के बचना चाहते हैं, तो कुछ रिमोट डेस्कटॉप ऐप्स यानी स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स को बेवजह अपने डिवाइस में डाउनलोड न करें। यह भी पढ़ेंः Cyber fraud: ऑनलाइन ठगी के शिकार हो जाते हैं, तो यहां दर्ज करा सकते हैं अपनी शिकायत, जानें क्या है तरीका

Team Viewer Quick Support

इन दिनों टीम व्यूअर क्विक सपोर्ट (Team Viewer Quick Support) ठगों के लिए बड़ा हथियार बन गया है। इसका उपयोग आईटी प्रोफेशनल्स स्क्रीन शेयरिंग या फिर रिमोटली डिवाइस को कंट्रोल करने के लिए करते हैं।

  • यह प्रोफेशनल्स के लिए उपयोगी टूल है, लेकिन आप नहीं जानते हैं कि यह कैसे कार्य करता है, तो इसे डाउनलोड न करें। यह सबसे सामान्य ऐप है, जिसका उपयोग इन दिनों साइबर ठगों द्वारा किया जा रहा है। ठग इसका उपयोग बैंकिंग लॉगइन डिटेल और ओटीपी (OTP) को चोरी करने के लिए करते हैं।
  • अगर कोई ठग आपके डिवाइस में यह ऐप इंस्टॉल करवा देता है, तो फिर वह रिमोटली ही डिवाइस में मौजूद चैट, फाइल ट्रांसफर, रियल टाइम स्क्रीनशॉट के साथ डिवाइस से जुड़ी इंफॉर्मेशन को एक्सेस कर सकता है। इसकी मदद से बैंकिंग डिटेल व अन्य संवेदनशील डाटा को ट्रांसफर किया जा सकता है। अगर कोई अज्ञात व्यक्ति आपसे यह ऐप डाउनलोड करने को कहता है तो तुरंत समझ जाएं कि आपको ठगी के जाल में फंसाने की कोशिश हो रही है।

AnyDesk

एनीडेस्क (AnyDesk)रिमोट डेस्कटॉप एप्लीकेशन है। यह प्रोफेशनल्स के बीच काफी लोकप्रिय है। मगर अब इसका उपयोग भी साइबर ठगी के लिए होने लगा है।

  • अगर आप इस ऐप से जुड़े फंक्शन से परिचित हैं और यह आपकी जरूरत का है, तो फिर ठीक है, नहीं तो इस ऐप को डिवाइस में इंस्टॉल करने से बचना चाहिए। इसकी मदद से रिमोटली यानी दूर बैठे लोग सिस्टम या डिवाइस को कंट्रोल कर सकते हैं।
  • आमतौर पर इस सॉफ्टवेयर का उपयोग प्रोग्राम्स, डॉक्यूमेंट्स, फाइल आदि को रिमोटली एक्सेस करने के लिए किया जाता है, लेकिन साइबर ठग इसका उपयोग लोगों को ठगने के लिए करने लगे हैं। इसमें ऑनलाइन कोलेबोरेशन, बिल्ट-इन फाइल ट्रांसफर, सेसंस रिकॉर्डिंग आदि जैसे फीचर्स दिए गए हैं।
  • इसकी मदद से ठग आपके मोबाइल को एक्सेस कर सकता है या फिर फोन की जानकारी डिलीट या कॉपी कर सकता है। बैंकिंग डाटा समेत अन्य जानकारी भी चुरा सकता है।
  • इस ऐप को इंस्टॉल करने पर एक कोड जेनरेट होता है, जिसे किसी दूसरे मोबाइल में डालकर आपके मोबाइल को ऑपरेट किया जा सकता है। इसमें क्रॉस कॉम्पैबिलिटी सपोर्ट है। यह विंडोज, मैकओएस, एंड्रॉयड, आईओएस, लिनक्स, फ्री बीएसडी, क्रोमओएस आदि को सपोर्ट करता है। यह भी पढ़ेंः अगर Facebook Account हो गया है हैक, तो ऐसे करें रिपोर्ट और रिकवर

AirDroid

एयरड्रॉयड (AirDroid) भी उपयोग सॉफ्टवेयर है। यह डिवाइस को मिरर, रिमोटली कंट्रोल और मैसेज को पीसी से रिसीव और रिप्लाई करने जैसे फीचर के साथ आता है।

  • इसकी मदद से डिवाइस को पीसी या फिर वेब के जरिए भी मैनेज किया जा सकता है। यह यूजर को रिमोट एक्सेस की सुविधा देता है, जिसका फायदा अक्सर साइबर ठग उठाता है। इससे एंड्रॉयड डिवाइस पर रिमोटली पूरी तरह से एक्सेस मिल जाता है।
  • यह स्क्रीन मिररिंग की सुविधा भी देता है। इसकी खास बात यह है कि यह मिररिंग की तर्ज पर काम करता है यानी कि एक डिवाइस में हो रहे किसी भी ऐप या डाटा में फेरबदल को दूसरे मोबाइल पर देखा जा सकता है।
  • साइबर क्रिमिनल्स ऐप डाउनलोड कराकर पहले यूजर की गतिविधियां देखते हैं और बाद में मौका मिलते ही उकाउंट साफ कर देते हैं।

AirMirror

एयरमिरर (AirMirror) भी स्क्रीन मिररिंग और रिमोटली कैमरा एक्सेस करने की सुविधा देता है। खास कर जो यूजर इसके बारे में नहीं जानते हैं, उनके लिए इसका उपयोग करना किसी खतरे से खाली नहीं है।

  • इसमें वन-वे ऑडियो की सुविधा है यानी डिवाइस के आसपास की आवाज को सुना जा सकता है। इसकी मदद से एक एंड्रॉयड फोन से दूसरे एंड्रॉयड फोन को कंट्रोल किया जा सकता है।
  • इससे सीधे डिवाइस को कंट्रोल किया जा सकता है। स्क्रीन मिररिंग फीचर की वजह से रिमोट डिवाइस को रियल-टाइम में देखा जा सकता है।

यहां करें रिपोर्ट

अगर आप भी ऑनलाइन फ्रॉड के शिकार हो जाते हैं, तो फिर राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर भी जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा, डिवाइस को सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर से हमेशा अपडेट रखें। यदि किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर संदेह है, तो तुरंत अपने बैंक से संपर्क करें और लॉगइन क्रेडेंशियल बदल दें।

Screen Sharing Apps से रहें बच कर

  • किसी अनजान के कहने पर कोई भी रिमोट एक्सेस मोबाइल ऐप डाउनलोड न करें।
  • किसी अन्य ऐप को डाउनलोड करने से पहले उसकी उपयोगिता की जानकारी जरूर प्राप्त कर लें।
  • अपने बैंक, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, ई-वॉलेट की जानकारी एवं मोबाइल पर आने वाले वन टाइम पासवर्ड या वेरिफिकेशन कोड को किसी से शेयर करने से बचें।
  • स्कैमर कई बार फिशिंग ईमेल, टेक्स्ट या फिर इंटरनेट मीडिया के जरिए नकली क्यूआर कोड भेजते हैं। फर्जी कोड को स्कैन करने पर यूजर को ऑरिजनल की तरह दिखने वाले पेज पर निर्देशित किया जाता है। जहां पीड़ित को पीआईआई (पर्सनल आइडेंटिफिएबल इंफॉर्मेशन) दर्ज करके लॉगइन करने के लिए कहा जाता है। यहां से आपकी संवेदनशील जानकारी को चोरी किया जा सकता है या फिर स्पाइवेयर या वायरस को भी डिवाइस में ट्रांसफर किया जा सकता है। यह भी पढ़ेंः QR Code के जरिए करते हैं पेमेंट तो जान लें ये बातें, नहीं को खाली हो जाएगा अकाउंट

Web Stories